Saturday, December 22, 2012

जीकर जाएंगे___

-एक हिन्दी गज़ल-

सोचके आए थे कुछ कर जाएंगे,
क्या पता था जीतसे डर जाएंगे___

रोते क्यों हो एक अशर्फी के लिए?
कुछ नहीं जो साथ लेकर जाएंगे___

चोचले खानेके अपने है नहीं,
हम तो वरना भूखसे मर जाएंगे___

आज उसने नैन खोले ही नहीं,
हमने तो सोचा था पीकर जाएंगे___

हाँ! मुहब्बत हमने की, ये सोचके,
आए दुनियामे तो जीकर जाएंगे___

आसुओंको पोछने आएंगे वो,
उनमे अपने पाप धोकर जाएंगे___

जख्म होजाए मगर ना दर्द हो,
इस कदर वो हमको छूकर जाएंगे___

बेवफाको कैसे हम दे बद्दुआ!
चूमके वो होठ सीकर जाएंगे___

दर्द क्यों सबको दिया  'आनंद'ने ?
जो है पाया वोही देकर जाएंगे___


                                  ...आनंद रघुनाथ

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