-एक हिन्दी गज़ल-
सोचके आए थे कुछ कर जाएंगे,
क्या पता था जीतसे डर जाएंगे___
रोते क्यों हो एक अशर्फी के लिए?
कुछ नहीं जो साथ लेकर जाएंगे___
चोचले खानेके अपने है नहीं,
हम तो वरना भूखसे मर जाएंगे___
आज उसने नैन खोले ही नहीं,
हमने तो सोचा था पीकर जाएंगे___
हाँ! मुहब्बत हमने की, ये सोचके,
आए दुनियामे तो जीकर जाएंगे___
आसुओंको पोछने आएंगे वो,
उनमे अपने पाप धोकर जाएंगे___
जख्म होजाए मगर ना दर्द हो,
इस कदर वो हमको छूकर जाएंगे___
बेवफाको कैसे हम दे बद्दुआ!
चूमके वो होठ सीकर जाएंगे___
दर्द क्यों सबको दिया 'आनंद'ने ?
जो है पाया वोही देकर जाएंगे___
...आनंद रघुनाथ
No comments:
Post a Comment