जेवढा पळशील मागे तेवढी टाळेल ती ही
होउदे काही असे की शायरीला ”तू” सुचावे...
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गाण्यात चूक झाली अन् नेमके उमगले
की दर्द केवढा हा वर्ज्य स्वरात आहे...
माधुर्य चाखतांना सपशेल ”ते” विसरले
कित्येक मक्षिकांची पूंजी मधात आहे...
मरणास काय भ्यावे... त्याचे न भय मला... पण...
मी काळजीत आहे, ती काळजात आहे...
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राखुनी अंतर जरा बसलो, नको समजू दुरावा
सभ्यता, संयम, नितळतेचाच हा आहे पुरावा...
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कधी होणार माझी तू? मला हे सांग ना गजले
तुझ्या-माझ्या मध्ये येथे उभी नियमावली आहे...
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तू दिला होकार आणिक हात ही हातात माझ्या
पाहिले हे मध्यरात्री मी खुळ्या स्वप्नात माझ्या...
मी कशी अंगावरी मिरवू तशी पिवळी चकाकी,
भूकवेड्या आसवांची चमक ह्या डोळ्यांत माझ्या...
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चार भिंती आतुनी सजवून तू
पाैर्णिमेचे चांदणे विझवू नको...
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अक्षरांचा केवढा आघात आहे!
लेखणीची आयुधांवर मात आहे...
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शायराला आज आशिर्वाद द्या
अन् उद्या या शायरीला दाद द्या...
वेचतो अन् मग फुलांना गुंफतो,
शब्दसुमनांचा जरा संवाद द्या...
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कोण आले, कोण गेले खंत नाही
मरण म्हणजे जीवनाचा अंत नाही...
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तशीच चटपटीत अन् जहाल भेळ दे जरा,
हसायचे, रुसायचे जुनेच खेळ दे जरा...
विचारले मनास मी, ”मनात काय रे तुझ्या?”
चिडून ते हि बोलले, ”मला हि वेळ दे जरा...”
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